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Van Vikas Nigam Madhya Pradesh: जंगल, जीवन और जनकल्याण की मिसाल

Van Vikas Nigam Madhya Pradesh: जब कोई पेड़ गिरता है, तो उसके साथ प्रकृति का एक टुकड़ा भी बिखर जाता है। लेकिन मध्यप्रदेश में एक ऐसी संस्था है, जिसने न केवल गिरे हुए पेड़ों को दोबारा उगाया, बल्कि उनसे जुड़ी ज़िंदगियों को भी संवार दिया। मध्यप्रदेश राज्य वन विकास निगम ने बीते 50 वर्षों में पर्यावरण संरक्षण की वह मिसाल कायम की है, जिस पर आज पूरा देश गर्व कर सकता है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में वन विकास निगम की स्वर्ण जयंती पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में न केवल इसकी उपलब्धियों की सराहना की, बल्कि इसके विजन-2047 का अनावरण भी किया। इस मौके पर जो बात सबसे ज्यादा प्रेरित करती है, वह है कि निगम ने 3 लाख 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में जंगलों का पुनर्वास कर दिखाया है – एक ऐसी उपलब्धि जो न सिर्फ पेड़ों की, बल्कि इंसानियत की भी जीत है।

डॉ. यादव ने अपने उद्बोधन में बताया कि कैसे राख के पहाड़ों पर, जहाँ कभी जीवन का नामोनिशान नहीं था, वहाँ अब हरियाली लहराने लगी है। यह सिर्फ पर्यावरणीय सुधार नहीं, बल्कि Van Vikas Nigam Madhya Pradesh की अद्भुत तकनीक और समर्पण का प्रतीक है। उन्होंने यह भी कहा कि अन्य राज्य अब मध्यप्रदेश के इस मॉडल को अपनाने के लिए इच्छुक हैं।

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि अब समय आ गया है कि हम जंगलों को सिर्फ लकड़ी का स्रोत नहीं, बल्कि इको-टूरिज्म, जैव विविधता और जीवनशैली का हिस्सा मानें। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि जैसे जोधपुर फर्नीचर का बड़ा केंद्र बना है, वैसे ही मध्यप्रदेश भी अपनी सागौन और अन्य लकड़ियों के आधार पर नया उद्योग खड़ा कर सकता है।

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राज्य सरकार द्वारा जू और वन्यजीव रेस्क्यू सेंटर की स्थापना की योजना भी इसी दिशा में एक बड़ा कदम है। टाइगर, गिद्ध, घड़ियाल और अब सर्पों की गणना जैसे कार्य यह साबित करते हैं कि मध्यप्रदेश न केवल संरक्षण कर रहा है, बल्कि वन्यजीवों को फिर से जीवन देने का प्रयास भी कर रहा है।

इस पूरे सफर में वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों का योगदान अतुलनीय रहा है। कार्यक्रम में आर.के. नामदेव, आर.एस. नेगी, रतन पुरवार, पी.सी. ताम्रकार और भगवंतराव बोहरपी जैसे कर्मवीरों को सम्मानित किया गया, जिन्होंने धरातल पर जाकर इस बदलाव को साकार किया।

वन राज्यमंत्री श्री दिलीप अहिरवार ने बताया कि ‘एक पेड़ माँ के नाम’, ‘जल-गंगा संवर्धन अभियान’ जैसे भावनात्मक और प्रभावी अभियानों ने जनता को इस आंदोलन से जोड़ा। हजारों कुएँ, बावड़ियाँ और जलस्रोत फिर से जिंदा किए गए हैं। यह सिर्फ पर्यावरण की नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के जीवन की सुरक्षा है।

अपर मुख्य सचिव श्री अशोक वर्णवाल ने कहा कि 1975 में जब यह निगम बना था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह एक दिन 3 लाख 90 हजार हेक्टेयर जंगलों को पुनर्जीवित कर देगा। लेकिन आज यह सपना साकार हुआ है।

कार्यक्रम के अंत में एक भावनात्मक लघु फिल्म के माध्यम से निगम की यात्रा को दर्शाया गया – एक यात्रा जो सिर्फ पेड़ों की नहीं, भरोसे, मेहनत और भविष्य की यात्रा है।

Disclaimer:

यह लेख सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आधिकारिक भाषणों और प्रेस सूचनाओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य जनसाधारण को वन विकास निगम की उपलब्धियों और प्रयासों की जानकारी देना है। यह लेख किसी राजनीतिक पक्ष या संस्था का प्रचार नहीं करता है, बल्कि एक सकारात्मक पर्यावरणीय कार्य की सराहना है।

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