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Chandrashekhar Azad: एक ऐसा वीर जिसने शहादत दी पर अंग्रेजों के हाथ नहीं आया

Chandrashekhar Azad कभी-कभी इतिहास के पन्नों में कुछ ऐसे नाम दर्ज हो जाते हैं जो समय के साथ धुंधले नहीं होते, बल्कि और भी चमकने लगते हैं। ऐसा ही एक नाम है चंद्रशेखर आज़ाद का — वो नाम, जो ना सिर्फ़ भारत की आज़ादी का प्रतीक बना, बल्कि आज भी हर देशभक्त के दिल में धड़कन की तरह ज़िंदा है। मध्यप्रदेश के अलीराजपुर ज़िले में जन्मे इस वीर सपूत ने बचपन से ही मातृभूमि के लिए जीने-मरने की कसम खा ली थी।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने “स्मरण-आज़ाद” कार्यक्रम में वर्चुअली शामिल होकर चंद्रशेखर आज़ाद को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके बलिदान को देश प्रेम की पराकाष्ठा बताया। डॉ. यादव ने कहा कि आज़ाद का जीवन साहस, संकल्प और स्वाभिमान की ऐसी मिसाल है जिसे भारतवासी कभी नहीं भूल सकते।

आज़ाद का नाम, सोच और शौर्य आज भी प्रेरणा है

चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनके विचार, साहस और आत्मबल असाधारण थे। जब वे काशी में असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुए तो न्यायाधीश के सामने अपने नाम के बदले कहा – “आज़ाद”, पिता का नाम – “स्वाधीनता” और घर का पता – “जेल”। यही नहीं, उन्होंने संकल्प लिया था – “मैं आज़ाद था, आज़ाद हूं और आज़ाद ही रहूंगा”। यह वाक्य सिर्फ़ शब्द नहीं, एक ऐसी चेतना थी जिसने लाखों युवाओं को देशभक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

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मुख्यमंत्री ने कहा कि आज़ाद सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि क्रांति की आत्मा थे। उनका नेतृत्व, योजना और साहस ही था जिससे भगत सिंह जैसे युवाओं को दिशा मिली। सांडर्स की हत्या और काकोरी कांड जैसे ऐतिहासिक अभियानों में उनकी भूमिका केंद्रीय रही। जब-जब देश को आज़ादी के लिए लड़ने की जरूरत पड़ी, आज़ाद सबसे आगे खड़े मिले।

अंतिम सांस तक “आज़ाद” ही रहे

27 फरवरी 1931, वह दिन जब इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में आज़ाद ने अपने अंतिम हथियार की आखिरी गोली खुद पर चला दी — ताकि वे कभी अंग्रेज़ों के हाथ न आ सकें। उन्होंने जो नाम चुना था, उसे अपने जीवन के आखिरी पल तक निभाया। डॉ. मोहन यादव ने कहा कि यही है सच्चा देश प्रेम, यही है बलिदान की पराकाष्ठा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज़ाद का बलिदान हमें यह समझाने के लिए काफी है कि स्वतंत्रता किसी एक दिन की घटना नहीं होती, वह हजारों बलिदानों की तपिश में तपकर मिलती है।

आज की युवा पीढ़ी को आज़ाद से सीख लेनी चाहिए

डॉ. यादव ने युवाओं को संदेश दिया कि चंद्रशेखर आज़ाद सिर्फ़ इतिहास के एक पन्ने का नाम नहीं, वे एक विचारधारा हैं। उनके जीवन से हमें यह सीखने को मिलता है कि कोई अकेला व्यक्ति भी इतिहास की धारा बदल सकता है, अगर उसके पास जुनून, आत्मबल और देशभक्ति हो। आज की नई पीढ़ी को चाहिए कि वो आज़ाद के जीवन से प्रेरणा ले, और उनके अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए एकजुट होकर कार्य करे।

कार्यक्रम में उमड़ा जनसैलाब, भावुक हुआ माहौल

“स्मरण-आज़ाद” कार्यक्रम के दौरान चंद्रशेखर आज़ाद नगर में जब लोग उनकी प्रतिमा के सामने एकत्र हुए, तो माहौल भावनाओं से सराबोर हो गया। मंत्रीगण, जनप्रतिनिधि, अधिकारी और हज़ारों ग्रामीणों ने शहीद को श्रद्धांजलि दी। डॉ. यादव ने कहा कि यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके बताए रास्ते पर चलकर एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करें।

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Disclaimer:

यह लेख ऐतिहासिक तथ्यों, मुख्यमंत्री के वचनों और आधिकारिक कार्यक्रम से मिली जानकारी के आधार पर लिखा गया है। इसमें व्यक्त विचार पूर्णत: सूचना और प्रेरणा देने हेतु हैं, न कि किसी राजनीतिक उद्देश्य से।

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